उठ जाग रे मुसाफिर !
दुनियाँ मे सार नहीं ,
दो दिन का ये तमाशा है ।
क्या राजा क्या रंक क्या रानी ,
पंडित अरु ,महंत औ ज्ञानी ।
ये संसार सारा है कहानी ,
कुछ भी है करार नहीं ,
दुनिया मे है सार नहीं ।
उठ जाग रे मुसाफिर !!
सूरज चंदा औ तारे ,
सागर सलिल करारे ।
एक दिन नहीं रहेंगे ,
बिलकुल भी आधार नही ।
दुनिया मे है सार नहीं ,
उठ जाग रे मुसाफिर !!
बन जा दुनिया से कुछ न्यारा ,
होगा तभी गुजारा ।
मानुष का तन ये पाई ,
काहे फिरत लगी लगाई ।
फिर मिलत हार नहीं ,
दुनिया मे है सार नहीं ।
उठ जाग रे मुसाफिर !!
apke sujhavon ka swagat hai .
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