ॐ
व्यक्ति को अध्यात्म का मर्म समझाने , गुण , कर्म और स्वभाव का विकास करने की शिक्षा देने , सन्मार्ग पर चलाने का ऋषियों द्वारा परिणीत मार्ग बताए गए है - धार्मिक कथाओं के कथन और श्रवण द्वारा सत्संग एवं पर्व विषयों पर उद्देश्य पूर्ण मनोरंजन , त्योहार और व्रत उत्सव यही प्रयोजन पूरा करते है ।
स्वामी विवेकानंद जी ने अपने संभाषण मे एक बार भारतीय संस्कृति की पर्व परंपरा की महत्ता बताते हुए कहा था - वर्ष मे प्रायः चालीस पर्व पड़ते है , युगधर्म के अनुरूप इनमे से दस का भी निर्वाह बन पड़े तो उत्तम है । उन प्रमुख दस पर्वों के नाम और उद्देश्य इस प्रकार है :-
1) दीपावली ;- लक्ष्मी जी के उपार्जन और उपयोग मर्यादा का बोध । गोसंवर्धन के समूहिक प्रयत्न से अंधेरी रात को जगमगाने का उदाहरण । वर्षा के उपरांत समग्र सफाई का उद्देश्य ।
2) गीता जयंती :- गीता के कर्मयोग का समारोह पूर्वक प्रचार , प्रसार ।
3) वसंत पंचमी :- सदैव उल्लासित , हल्की मनःस्थिति बनाए रखना , तथा साहित्य , संगीत एवं कला को सही दिशा देना ।
4) महाशिवरात्रि ;- शिव के प्रतीक जिन सत्प्र्व्रत्तियों की प्रेरणा का समावेश है , उनका रहस्य समझना , समझाना ।
5) होली :- नवान्न का सामूहिक वार्षिक यज्ञ , प्रहलाद कथा का स्मरण । सच्चाई का संवहन और बुराई का उन्मूलन ।
6) गंगादशहरा :- भागीरथ के उच्च उद्देश्य एवं तप की सफलता से प्रेरणा ।
7) व्यास पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा):- स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था । गुरु तत्व की महत्ता और गुरु के प्रति श्रद्धाभावना की अभिवृद्धि ।
8) रक्षाबंधन :- भाई की पवित्र दृष्टि - नारी रक्षा । पापों के प्रायश्चित हेतु हेमाद्री संकल्प । यज्ञोपवीत धारण ।
9)पितृविसर्जन ;- पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता की अभिव्यक्ति के लिए श्राद्ध तर्पण ।
10 ) विजयदशमी :- स्वास्थ्य , शस्त्र एवं शक्ति संगठन की आवश्यकता का स्मरण । असुरता पर देवत्व की विजय ।
इनके अतिरिक्त रामनवमी , श्री कृष्ण जन्माष्टमी, हनुमान जयंती , गणेश चतुर्थी ,क्षेत्रीय पर्व हैं , जिनमें कई तरह की शिक्षाएं और प्रेरणाएँ सन्निहित है ।
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