Monday 10 December 2012

उठ जाग रे मुसाफिर !





उठ जाग रे मुसाफिर !


दुनियाँ मे सार नहीं ,

दो दिन का ये तमाशा है ।

क्या राजा क्या रंक क्या रानी ,

पंडित अरु ,महंत औ ज्ञानी ।

ये संसार सारा है कहानी ,

कुछ भी है करार नहीं ,

दुनिया मे है सार नहीं ।

उठ जाग रे मुसाफिर !!



सूरज चंदा औ तारे ,

सागर सलिल करारे ।

एक दिन नहीं रहेंगे ,

बिलकुल भी आधार नही ।

दुनिया मे है सार नहीं ,

उठ जाग रे मुसाफिर !!


बन जा दुनिया से कुछ न्यारा ,

होगा तभी गुजारा ।

मानुष का तन ये पाई ,

काहे फिरत लगी लगाई ।

फिर मिलत  हार नहीं ,

दुनिया मे है सार नहीं ।

उठ जाग रे मुसाफिर !!

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