Thursday, 13 December 2012

गीता - समस्त योगों का सार !

इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवान्हमव्ययम् ।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरीक्ष्वाकवेब्रवीत ॥
       
                             (श्री मद्भगवत् गीता - चतुर्थ अद्ध्याय )


श्री कृष्ण भगवान बोले कि -" हे ! अर्जुन मैंने इस अविनाशी योग को कल्प के आदि मे   सूर्य के प्रति कहा था और सूर्य ने अपने पुत्र मनु के प्रति कहा और मनु ने अपने पुत्र इक्ष्वाकु के प्रति कहा था । 
सत्य न तो नया है - न पुराना । जो नया है , वह पुराना हो जाता है , जो पुराना है वह कभी नया था । जो नए से पुराना होता है  वह जन्म से मृत्यु कि ओर जाता है । सत्य का न कोई जन्म है न कोई मृत्यु । इसलिए सत्य न तो नया है न पुराना । सत्य सनातन है । कृष्ण ने इस सूत्र मे बहुत थोड़ी सी बात मे बहुत बड़ी बात कही है । एक तो उन्होने यह कहा कि जो मैं तुमसे कह रहा हूँ वही मैंने कल्प मे सूर्य से भी कहा ।
जिस दिन कृष्ण कहते है कि मैंने सूर्य से कहा उस दिन भी सत्य जहां था आज भी वहीं है । जिस दिन सूर्य ने मनु से कहा तब भी सत्य जहां था आज भी वही है , जिस दिन मनु ने इक्ष्वाकु से कहा उस दिन भी सत्य जहां था आज भी वहीं है , और जिस दिन कृष्ण अर्जुन से कहते है तब भी सत्य जहां था आज भी वही है । आज भी सत्य वही है जहां था । कल न भी होंगे तब भी सत्य वहीं रहेगा जहां है । 
हम कहते है कि समय बीत रहा है लेकिन सच्चाई इसके उलट ही है समय नहीं बीतता है सिर्फ हम बीतते है , हम आते और जाते है , समय अपनी जगह है ।


 एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः ।
स कालेनेह महता योगा नष्टः परन्तपः ॥

- इस प्रकार परंपरा से प्राप्त हुए इस योग को राजर्षियों ने जाना । परंतु हे अर्जुन , वह योग बहुत काल से इस पृथ्वी - लोक में लुप्तप्राय हो गया है ।

स एवायं मया ते अद्मम योगः प्रोक्तः पुरातनः ।
भक्तोसि मे सखा चेति रहस्यम ह्येतुत्तमम् ॥

-  वही पुरातन योग मैंने तेरे लिए वर्णन किया है क्योंकि तू मेरा भक्त और प्रिय सखा है इसलिए यह योग बहुत उत्तम और रहस्य अर्थात मर्म का विषय है ।

जीवन रोज बदल जाता है । ऋतुओँ  की भांति जीवन परिवर्तन का एक क्रम है । गाड़ी के चाक  की  भांति घूमता चला जाता है लेकिन चक का घूमना भी एक न घूमने वाली कील पर टिका होता है । कील नही घूमती इसीलिए चाक घूम पाता है । अर्थात ये सारा परिवर्तन किसी अपरिवर्तित के ऊपर निर्भर करता है ।और वह अपरिवर्तित शक्ति है ईश्वर । ईश्वर हमेशा थे हमेशा ही रहेंगे , अनंत काल तक । चिर काल तक ।
         हरी ॐ ।

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