पौराणिक कथा है कि दक्ष के
यज्ञ मे शिव का निमंत्रण न होने से व उनका अपमान होने से सती ने योगबल से अपनी देह
को त्याग कर तत्पश्चात हिम पुत्री पार्वती के रूप मे जन्म ले कर सदा शिव की पत्नी
होने का निश्चय किया था । समाचार विदित होने पर शिव को दक्ष पर बड़ा क्रोध और सती
पर मोह हुआ । वे दक्ष यज्ञ को नष्ट करके
सती के शव को अपने कंधे पर डाल कर घूमते रहे । श्री विष्णु ने शिव के मोह की शांति
एवं जग कल्याण हेतु सती के श्री अंगों को काट काट कर भिन्न भिन्न स्थानों पर गिरा
दिया , वे ही इक्यावन पीठ बने । ज्ञातव्य है कि योगिनी हृदय एवं
ज्ञानर्णव के अनुसार ऊर्ध्व भाग के अंग जहां गिरे वहाँ वैदिक और दक्षिणमार्ग की और
हृदय से निम्न भाग के अंगो के पतनस्थलों मे वाममार्ग की सिद्धि होती है । सती के
विभिन्न अंग कहाँ कहाँ गिरे और वहाँ कौन कौन से पीठ बने ,
वे निम्न लिखित है :-
पूर्व दिशा मे
[1] कामरूप कामाख्या
सती का योनि का भाग जहां गिरा वहाँ कामरूप
कामाख्या नामक पीठ का आविर्भाव हुआ । ये स्थान असम प्रांत मे ब्रम्ह्पुत्र नदी के
तट पर कामद गिरि पर्वत पर विराजमान है । इस पहाड़ी को नील पर्वत भी कहते है ।
चिन्मयी आद्याशक्ति का यह पीठ प्रकृतिक सुषमा से सज्जित होकर युगों से मानव मन को
मोहता आ रहा है । देवी के योनि भाग के यहाँ गिरने के कारण इस पीठ को योनि पीठ भी
कहा जाता है । इस शक्ति पीठ के भैरव श्री उमानंद है । यहाँ कामाख्या देवी की पूजा
उपासना तन्त्रोक्त विधि से की जाती है।
आजकल कामगिरि पर्वत पर
नीचे से ऊपर तक पक्का मार्ग बना हुआ है जिसे नरकसूर मार्ग भी कहा जाता है । इस
संबंध मे भी एक कथा प्रचिलित है : त्रेता युग मे वराह पुत्र नरक को भगवान नारायण
द्वारा कामरूप राज्य मे राजा का पद इस निर्देश के साथ दिया गया कि इस क्षेत्र मे
अद्याशक्ति कामाख्या है उनके प्रति सदैव भक्ति भाव बनाए रखे । नरक भी भगवान नारायण
के निर्देश का यथा वत पालन करता रहा , बाद मे बाणासुर के प्रभाव मे आकर वह भी देवद्रोही
असुर बन गया । असुर नरक ने भगवती कामाख्या के रूप लावण्य पर मुग्ध हो कर उनके
समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा । देवी तत्काल उत्तर दिया कि यदि तुम रात भर मे इस
मंदिर का पथ , घाट एवं भवन आदि का निर्माण कर दो तो मै सहमत हो
सकती हूँ । नरक ने देव शिल्पी विश्वकर्मा को तत्काल इस कार्य को पूर्ण करने आदेश
दिया । जैसे ही निर्माण कार्य समाप्त होने को हुआ वैसे ही प्रातः काल होने की सूचक
मुर्गे ने बांग दे दी अतः विवाह कि शर्त
पूरी न हो सकी और देवी के साथ नरक का विवाह न हो पाया । फलस्वरूप नरक ने लोगो को
पीड़ा देना आरंभ कर दिया जिससे माता के दर्शनों मे बाधा पड़ने लगी फलस्वरूप मुनि
वशिष्ठ ने क्रोधित हो कर उसको उसके राज्य सहित नष्ट हो जाने का शाप दे दिया जिससे
कामद गिरि पर्वत विलुप्त हो गया । सोलहवीं शताब्दी मे राजा विश्व सिंह ने भगवती का
स्वर्ण मंदिर निर्मित करवाया । कुछ दिनो पश्चात काला पहाड़ ने इस मंदिर को ध्वस्त
कर दिया था , तत्पश्चात राजा विश्व सिंह के पुत्र नर नारायण
सिंह व उनके अनुज शुक्ल ध्वज ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया । जैसा कि वहाँ पर
शिलालेख से भी पता चलता है। कहा जाता है कि इतना सब कुछ होने के बाद भी नरकासुर
द्वारा बनवाया गया वह पथ आज भी विद्यमान है ।
[2] मेघालय का जयंती शक्ति पीठ
मेघालय भारत के पूर्वी भाग मे स्थित एक पर्वतीय
राज्य है । गारो ख़ासी और जयंती यहाँ की मुख्य पहाड़ियाँ है । यहाँ जयंती नमक पहाड़ी
पर भगवती सती देह की वाम जंघा का पतन हुआ था । इसी पहाड़ी को ही शक्ति पीठ माना
जाता है । यह शिलांग से 52 कि॰ मी॰ दूर है । यहाँ की शक्ति जयंती और भैरव
क्रमदीश्वर है ।
[3] त्रिपुरा का त्रिपुर सुंदरी
शक्ति पीठ
त्रिपुरा भी भारत के पूर्वी भाग का एक राज्य है ।
यहाँ भगवती राज राजेश्वरी का भव्य मंदिर है....................
आगे और भी जानकारी के साथ फिर मिलूँगी -